भगवान् शिव के द्वादश (12) ज्योतिर्लिंगों के बारे में आपने कभी न कभी सुना ही होगा | इनमें प्रभु रामेश्वरम् की…

भगवान् शिव के द्वादश (12) ज्योतिर्लिंगों के बारे में आपने कभी न कभी सुना ही होगा | इनमें प्रभु रामेश्वरम् की स्थापना श्री राम ने रामसेतु बनाने से पहले की थी | जब महावीर हनुमान ने उनके द्वारा दिए गए शिव लिंग के इस नाम का मतलब पूछा तो भगवान् राम ने शिव जी के नवीन स्थापित ज्योतिर्लिंग के स्वयं द्वारा दिए इस नाम की व्याख्या में कहा-
रामस्य ईश्वर: स: रामेश्वर: ||
मतलब जो श्री राम के ईश्वर हैं वही रामेश्वर हैं।

बाद में जब रामसेतु बनने की कहानी भगवान् शिव, माता सती को सुनाने लगे तो बोले के प्रभु श्री राम ने बड़ी चतुराई से रामेश्वरम नाम की व्याख्या ही बदल दी | माता सती के ऐसा कैसे, पूछने पर देवाधिदेव महादेव ने रामेश्वरम नाम की व्याख्या करते हुए, उच्चारण में थोड़ा सा फ़र्क बताया-
रामा: ईश्वरो: य: रामेश्वर: ||
यानि श्री राम जिसके ईश्वर हैं वही रामेश्वर हैं।

जिस सनातन धर्म के आराध्य भी एक दूसरे का सम्मान करते है, उस हिन्दू समाज के सभी धर्मानुरागियों को सावन मास की शुभकामनायें |
ॐ नमः शिवाय ||
(कहानी पवन कुमार जी के सौजन्य से)

भगवान शिव और विश्व की इतिहास


(Lord Shiva and world history)
कुछ माह पहले ही ‘ईश्वरकण’ की खोज के प्रयोग से हलचल पैदा करने वाली ‘नाभिकीय अनुसंधान यूरोपीय संगठन’ (CERN) का नाम तो विज्ञान प्रेमियों को याद होगा। ११३ देशों के ६०८ अनुसंधान संस्थानों के ७९३१ वैज्ञानिक तथा इंजीनियर इस संस्थान में अनुसंधानरत हैं। यह फ़्रान्स और स्विट्ज़रलैण्ड दोनों देशों की‌ भूमि में १०० मीटर गहरे में स्थित है। यह अनेक अर्थों में विश्व की विशालतम भौतिकी‌ की प्रयोगशाला है।

१९८४ में यहां के दो वैज्ञानिकों को बोसान कणों की खोज के लिये नोबेल से सम्मानित किया गया। १९९२ में ज़ार्ज शर्पैक को कणसंसूचक के आविष्कार के लिये नोबेल से सम्मानित किया गया।१९९५ में यहां ‘प्रति हाइड्रोजन ‘ अणुओं का निर्माण किया गया। वैसे तो इसकी उपलब्धियों की सूची लम्बी है, किन्तु इस समय यह फ़िर गरम चर्चा में है क्योंकि इसके एक प्रयोग से ऐसा निष्कर्ष- सा निकलता दिखता है कि एक अवपरमाणुक कण ने प्रकाश के वेग को हरा दिया है।

यह तो आइन्स्टाइन को अर्थात एक दृष्टि से आधुनिक भौतिकी के एक आधार स्तंभ को ध्वस्त कर सकने वाली खोज है। अभी‌ इस क्रान्तिकारी खोज की जाँच पड़ताल चल रही है। सरलरूप से कहें तब इस प्रयोगशाला में मुल कणों को तेज से तेज दौड़ाया जाता है, अर्थात यह प्रयोगशाला ‘कण त्वरक’ है जो मूलकणों को प्रकाश वेग के निकटतम त्वरित वेग (particle accelerator) प्रदान करने की क्षमता रखती है, और फ़िर यह उनमें, यदि मैं विनोद में कहूं तब, मुर्गों के समान टक्कर कराती है (अतएव इसका नाम विशाल हेड्रान संघट्टक भी है ) और यह इस तरह नए कणों का निर्माण कर सकती है, और प्रयोगशाला में‌ ही यह ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की‌ सूक्ष्मरूप में रचना कर सकती है। न केवल यह आकार और प्रकार में विशालतम है वरन कार्य में‌ सूक्ष्मतम कणों के व्यवहार की‌ खोज करती है, जिनके अध्ययन से इस विराट ब्रह्माण्ड की संरचना समझने के लिये भी मदद मिलती है।

संभवत: आपको विश्वास न हो कि इस विशालतम भौतिकी प्रयोगशाला केन्द्र में शिव जी कहना चाहिये कि नटराज की एक विशाल प्रतिमा स्थापित है ! जिस तरह शिव जी का ताण्डव नृत्य सृष्टि के विनाश और पुन: निर्माण का द्योतक है उसी‌ तरह इस ब्रह्माण्ड में सूक्ष्मतम कण नृत्य करते हैं, एक दूसरे को नष्ट करते हैं, और नए कणों की रचना करते हैं। अर्थात शिव जी का ताण्डव नृत्य ब्रह्माण्ड में हो रहे मूल कणों के ‘नृत्य’ का प्रतीक है।
१९७५ में फ़्रिट्याफ़ काप्रा, एक प्रसिद्ध अमैरिकी भौतिकी वैज्ञानिक ने ‘द डाओ आफ़ फ़िज़िक्स’ नाम की एक अनोखी पुस्तक लिखी, यह उनकी पाँचवी ‘अंतर्राष्ट्रीय सर्वाधिक प्रिय पुस्तक सिद्ध हुई, इसके २३ भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। इस पुस्तक में‌ काप्रा ने शिव के ताण्डव और अवपरमाण्विक कणों के ऊर्जा नृत्य का संबन्ध दर्शाया है; “यह ऊर्जा नृत्य विनाश तथा रचना की स्पंदमान लयात्मक अनंत प्रक्रिया है। अतएव आधुनिक भौतिकी वैज्ञानिक के लिये हिन्दू पुराणों में वर्णित शिव का नृत्य समस्त ब्रह्माण्ड में अवपरमाण्विक कणॊं का नृत्य है, जो कि समस्त अस्तित्व तथा प्राकृतिक घटनाओं का आधार है।” वे आगे कहते हैं, “आधुनिक भौतिकी में‌ पदार्थ निष्क्रिय और जड़ नहीं‌ है वरन सतत नृत्य में रत है।” इस तरह आधुनिक भौतिकी तथा हिन्दू ज्ञान दोनों ही दृढ़ हैं कि ब्रह्माण्ड को गत्यात्मक ही समझना चाहिये, इसकी‌ निर्मिति स्थैतिक नहीं है।
शिव और मानव सभ्यता :- मानव समाज को जब भी जिस चीज की आवश्यकता हुई है, शिव ने अपनी दया और करुणा की छतरी खोल दी है। शिवजी के प्रति हम विभिन्न प्रकार से विचार भी नहीं कर सकते और न ही इतिहास में लिख सकते हैं।

मानव सभ्यता और मानव संस्कृति के गठन में शिव की जो विराट भूमिका है, उसमें यही कहना संगत है कि शिव को हटा देने पर मानव सभ्यता और मानव संस्कृति के लिए कोई भूमि ही नहीं मिल पाएगी। किंतु मानव सभ्यता और संस्कृति को निकाल देने पर भी शिव की महिमा रहेगी। वर्तमान मानव समाज और सुदूर भविष्य में भी मानव समाज के प्रति सुविचार करते समय, उसका यथार्थ इतिहास लिखते समय शिव को छोड़ देने से काम नहीं चलेगा। कई भाषा और कई धर्म के साथ भी शिव का सम्यक परिचय था। शिव को हम तंत्र और वेद, दोनों में ही पाते हैं, लेकिन अत्यंत प्राचीन काल में हम उन्हें नहीं पाते हैं, क्योंकि अत्यंत प्राचीन काल में ग्रंथ रचना संभव नहीं थी।
मानव सभ्यता में आध्यात्मिक जिज्ञासा और प्रेरणा का कारण और परिणाम ही शिव हैं। शिव अनंत हैं, शिव सार्वभौमिक और सार्वकालिक हैं। वे किसी एक सभ्यता के द्योतक नहीं हैं, वे तो सभ्यताओं के नियामक हैं। शिव स्वयं में एक संस्कृति हैं। एक ऐसी अनवरत धारा हैं, जो अध्यात्म और दैविक शक्तियों के प्रति मानवीय जिज्ञासाओं का प्रतिनिधित्व करती है। शिव की सार्वभौमिकता को जानना हो तो विश्व की अनेक सभ्यताओं के प्राचीन अध्यायों का अवलोकन करना होगा। मिस्र , हड़प्पा , बेबीलोन और मेसोपोटामिया की सभ्यता में पितृ शक्ति की उपासना के प्रतीक मिले हैं। ये प्रतीक ही शिव आस्था की वैश्विकता को सिद्घ करते हैं। जहां आगमो शिव है वेदों में शिव रुद्र हैं, वहीं पुराणों में अद्र्घनारीश्वर हो जाते हैं। यह एक गंभीर आध्यात्मिक चिंतन है। नारी को शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया। माना गया कि शिव अर्थात कल्याण, शक्ति के बिना संभव नहीं है। शक्ति के अनेक रूप हैं। प्रतीकात्मक दृष्टि से सब ज्ञान, धैर्य, वीरत्व, जिज्ञासा, क्षमा, सत्य तथा अन्य सात्विक आचरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

१) प्राचीन मिस्र, नील नदी के निचले हिस्से के किनारे केन्द्रित पूर्व उत्तरी अफ्रीका की एक प्राचीन सभ्यता थी, जो अब आधुनिक देश मिस्र है।
नील नदी के उपजाऊ बाढ़ मैदान ने लोगों को एक बसी हुई कृषि अर्थव्यवस्था और अधिक परिष्कृत, केन्द्रीकृत समाज के विकास का मौका दिया, जो मानव सभ्यता के इतिहास में एक आधार बना।
5500 ई.पू. तक, नील नदी घाटी में रहने वाली छोटी जनजातियाँ संस्कृतियों की एक श्रृंखला में विकसित हुईं, जो उनके कृषि और पशुपालन पर नियंत्रण से पता चलता है और उनके मिट्टी के मूर्ति , पात्र और व्यक्तिगत वस्तुएं जैसे कंघी, कंगन और मोतियों से य स्पष्ट दिखता है की पशुाप्ति ( शिव ) ही है उन्हें पहचाना जा सकता है। ऊपरी मिस्र की इन आरंभिक संस्कृतियों में सबसे विशाल, बदारी को इसकी उच्च गुणवत्ता वाले चीनी मिट्टी की , पत्थर के उपकरण और तांबे के मार्तिओं में पशुपति शिव जोड़ी बैल ( नंदी ) उनके देवता के रूप जाना जाता है।

मिस्र में शिव : कल्याण के शिवांक के अनुसार उत्तरी अफ्रीका के इजिप्ट (मिस्र) में तथा अन्य कई प्रांतों में नंदी पर विराजमान शिव की अनेक मूर्तियां पाई गई हैं। वहां के लोग बेलपत्र और दूध से इनकी पूजा करते थे।
माउंट ऑफ ओलिव्स पर टैम्पल माउंट या हरम अल शरीफ यरुशलम में धार्मिक रूप से बहुत पवित्र स्थान है। इसकी पश्चिमी दीवार को यहूदियों का सबसे पवित्र स्थल कहा जाता है। यहूदियों की आस्था है कि इसी स्थान पर पहला यहूदी मंदिर बनाया गया था। इसी परिसर में डॉम ऑफ द रॉक और अल अक्सा मस्जिद भी है। इस मस्जिद को इस्लाम में मक्का और मदीना के बाद तीसरा सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। यह स्थान तीन धर्मों के लिए पवित्र है- यहूदी, ईसाई और मुसलमान। यह स्थान ईसा मसीह की कर्मभूमि है और यहीं से ह. मुहम्मद स्वर्ग गए थे।
यहूदियों के गॉड : यहूदी धर्म के ईश्वर नीलवर्ण के हैं, जो शिव के रूप से मिलते-जुलते हैं। कृष्ण का रंग भी नीला बताया जाता है। यहूदी धर्म में शिवा, शिवाह होकर याहवा और फिर यहोवा हो गया। शोधकर्ताओं के अनुसार यहां यदुओं का राज था, यही यहूदी कहलाए।

✍🏻करणजे के यस

File photo

Avan shukla द्वारा प्रकाशित

भारतीय संस्कृति को लोगो के समक्ष प्रकट करने का छोटा सा प्रयास 🙏

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